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बड़ काटलक जोंक चमोकन / जयराम दरवेशपुरी
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आजादी ले गांधी बाबा सत्य अहिंसा के खोंटा
हमनी पीठ घदाघद गिरे अभियो कोंड़ा पर कोंड़ा
लंपट घर हर हक के चाभी ओकरा ढुक्कल हे हा ही
अजगर अजदह ले आजादी हमनी बदे तइ तबाही
ऊहे दलाल पतल चटवन के अभियों दौड़े घोड़ा
बड़ काटलक जोंक चिमोकन
आजिज आजिज सबके कइलक
दंगा कइलक अस्मित लेलक
कत्ते के ऊ लाजो लुटलक
कलह द्वेष के फन फइलइलक
तोड़ रहल हे तोड़ा जब तक मुँह
नुकइले रहवा तब तक
थप्पड़ खइते रहवा डट के जब तूं
डेग बढ़इवा तब चंडाल
ऊ भागवे करतो बेहोशी के
फल अब पइलूं पेट में उठइ मरोड़ा
एक बेर सब जोर लगावऽ सब के जी दहलावऽ
शोषण के शाही ताकत के उफनऽ आग लहक लगावऽ
बड़ी दिना से डंसते अइलो अब न´ एकरा छोड़ऽ।