भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आँख खोल के देखऽ / जयराम दरवेशपुरी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:22, 12 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जयराम दरवेशपुरी |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आँख खोल के देखले भइया
आँख खोल के देख
दुश्मन दोस्त बिलगावऽ पड़तो
के हे बद, के नेक

एक करऽ हे जन-जन शोषण
एक भरऽ हइ पेट
एक हे जग के पालेवाला
दोसर मटियामेट

कोय बइठल गटागट गिले
छुप-छुप दूध मलइया
कोय पोछऽ हे लोर टघारी
कोय छीनइ आन कमइया

जेकरे बूझऽ ही हम निम्मन
ऊहे दे देहइ धोखा
दौलत के कचगर रसरी से
भर रहलइ हे लादा कोंखा

कोय जान लुटइलक अप्पन
दुश्मन मार भगवाइ ले
मइया के चूड़ी बचवइ ले
झंडा गगन उड़ावइ ले।