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समाप्त / स्नेहमयी चौधरी
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पहले कुछ दिनों तक चाहा--
दूसरों के हिसाब से करूँ,
फिर
कुछ दिनों तक चाहा--
अपने हिसाब से करूँ।
अब
कोई भी चाह
क्यों करूँ !