भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीत कौन सा मैं गाऊँ / कुलवंत सिंह
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:06, 3 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुलवंत सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जग ये जैसे रो रहा है
मातम घर घर हो रहा है.
गीत कौन सा मैं गाऊँ ?
कैसे दुनिया को बहलाऊँ ?
देने सुत को एक निवाला
बिक जाती राहों में बाला.
कौन धान की हांडी लाऊँ ?
भर भर पेट उन्हें खिलाऊँ ?
खेल अनय का हो रहा है
न्याय चक्षु बंद सो रहा है.
कौन प्रभाती राग सुनाऊँ ?
इस धरा पर न्याय जगाऊँ ?
दो कौड़ी बिकता ईमान
’क्यू’ में खड़ा हुआ इंसान.
कौन ज्योति का दीप जलाऊँ ?
मानस को अंतस दिखलाऊँ ?
सत्य सुबकता कोने में
झूठ दमकता पैसे में.
कौन कोर्ट का निर्णय लाऊँ ?
झूठ सच का अंतर बतलाऊँ ?