कम्पोस्ट बिन / तिथि दानी ढोबले
आलीशान बंगले के बाहर
बाग़ के पार
डिज़ाइनर पत्थरों और कंकरों से भरी
लंबी सड़क थी
जहां जिंदगी दोनों ओर लगे
पेड़ों के अंधियारे झुरमुट में
हिल रही थी
मिसेज़ डायना की
उभरी हुई कूबड़ में
क़ैद थे
कई गिले शिकवे, दर्द, थकान,
और ज़िंदगी के बहुरंगी संघर्ष
वह रोज़ शाम के गाढ़े धुंधलके में
निकल आती थी बाहर
उस झुरमुट के नीचे
और फिर,
बूढ़ी और थक कर गिर गयी
लकड़ियों, पत्तियों को चुनती रहती थी
कुछ एक तो जैसे वह
गिरा देती थी जानबूझ कर
खुद को परखने,
कि
अब भी उनके हाथ और कमर
जिंदगी से हार,
मौत के सान्निध्य को आतुर
उन लकड़ियों, पत्तियों को चुन कर
कैसे देते हैं,
एक नया मकसद।
उनके लिए अब यही था
शाम का अनिवार्य नाश्ता।
जिस वक़्त सहारा देते
मिसेज़ डायना के हाथों से
फिसल गए थे
उनके पति के हाथ
और
जिनकी ज़िंदगी का पेड़
गिरा गया था
आरीनुमा ब्रेन हेम्रेज़ ,
और वे निकल गए थे
अज्ञात लोक की अनंत यात्रा पर,
उस वक़्त के बाद से
मिसेज़ डायना
उठा रही हैं
हर गिरती चीज़ को।
बूढ़ी हो चुकी या मृत
लकड़ियों, पत्तियों, पाइन के फूलों को,
जिन्हें उठा कर
वे डाल देती हैं
कम्पोस्ट बिन में
कुछ दिन बाद
उन्हें अलटा-पलटा कर
भरपूर कम्पोस्ट बन जाने तक
रखती हैं वह धैर्य।
तैयार कम्पोस्ट में वह देखती हैं
अपने जीवन की लौ ।
फिर, वह बिखर जाती है
उनके बाग़ और आंगन में
लिली, जिरेनियम रोज़ाने,
सेवंती और सूरजमुखी के फूलों की
शक्ल लिए,
और फिर वह
सूरज को मुंह चिढ़ाती है
क्योंकि सूरज रोज़ नहीं उतारा करता
बादलों की पोशाक़
और नज़र नहीं आता
अपनी भरपूर शख़्सियत लिए।
फिर तो जो भी गुज़रता
इस बाग़ के क़रीब से
कुछ-कुछ सूरज भर लेता
अपनी आंखों में
फिर, जिस से भी मिलाता है नज़रें
खुशी उग आती है उन चेहरों पर
और
फिर वे
देखने लग जाते
अपने जीवन के खाली पन्नों पर
उन फूलों की लिखावट
जो कम्पोस्ट बिन से
तैयार कलम की गुणवत्ता भरी
एक बानगी बस होती,
वे सभी जान जाते कि
जिंदगी में नाउम्मीदी और तमाम तकलीफों के
किर्र-किर्र कर खुलते- बंद होते
दरवाज़ों की कब्ज़ों पर
पड़ गया है
राहत भरा तेल
डायना अपनी ज़िंदगी के
निर्वात को भर लेतीं
जब
उनके आशियाने के सामने से
खिलखिला कर गुज़रती
युवती में वे.....
बचपन में ही गुज़र गयी
अपनी बेटी को देख लेती हैं।
साथ ही
अपना और अपने पति का अक़्स
वह देख लेतीं
हाथों में हाथ लिए
कल्पनाओं के परे
हर स्थान तक
साथ जाने को तैयार
दो जोशीले हमसफ़रों में।