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झीनी सी झँगूली बीच झीनो आँगु झलकतु / आलम
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झीनी-सी झँगूली बीच झीनो आँगु झलकतु,
झुमरि-झुमरि झुकि ज्यों क्यों झूलै पलना ।
घुँघरू घुमत बनै घुँघुरा के छोर घने,
घुँघरारे बार मानों घन बारे चलना ।
आलम रसाल जुग लोचन बिसाल लोल,
ऐसे नन्दलाल अनदेखे कहूँ कल ना ।
बेर-बेर फेरि फेरि गोद लै-लै घेरि-घेरि,
टेरि-टेरि गावें गुन गोकुल की ललना ।