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कैसे? आखिर कैसे? / मुकेश निर्विकार

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कैसे? आखिर कैसे?
धकियाऊँ मैं
समय के जड़त्व की
पाषाण-शिलाएँ
अवरुद्ध हैं जिनसे
जीवन का उन्मुक्त प्रवाह?

कैसे? आखिर कैसे
तैरूँ में
ठहरे हुए समय की
नदी के आर-पार?

कैसे?आखिर कैसे?
उगाऊँ में
संवेदनाओं की नई कोंपल
जीवन के सूखे शहतीर से?

कैसे? आखिर कैसे’
करूँ मैं
अमृतपान, जीवन रस का
होठों से काठ के स्तन छुआये?