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सिरजनहार से कुछ सवाल / मुकेश निर्विकार

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आखिर सत्य इतना अपारदर्शी क्यों है?
क्यों छायी है ईमान पर अँधेरी धुंध?
मेहनत क्यों पिस रही है दिन-रात
चाकी के पाटों में ?
क्यों पेर रही है निष्ठा
हर पल कोल्हू?
एक रोटी कि चोरी के एवज में
कल उस मासूम से बच्चे को भीड़ ने बहुत पीटा,
मगर, क्यों मूँछे ताने जा रहे है आज
सरे-बाजार से ये डकैत?
कल एक चवन्नी माँगने पर दुकानदार ने
गरियाया भिखारी को बहुत,
मगर, वही आनंदविभोर दिख रहा है आज
मीडिया के सामने
अपने पुत्र kii फिरौती देकर |

आखिर बदलाव कैसे हुआ, क्यों हुआ, इस चमन में?
क्यों फूलों को चुनना छोड़, सहेज रहे है लोग काँटे?

नीचता के इस मक़ाम तक युग
आखिर किन सोपनों से उतरा है?
इस सामूहिक पतन के लिए
कौन जिम्मेदार है?

क्या दुनिया अब कुदरत की डोर से बँधी नहीं रही?
क्यों समय कि पतंग बहने लगी है अब
वाहियात हवाओं के इशारों पर?

कब तक हावी रहेगी किस्मत
हमारे हाड़तोड़ करम पर?
कब तक चुकता होता रहेगा हमसे,
हमारे करम-लेखों का बकाया हिसाब?