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यह हमारा ही घर है / अमृता भारती

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वह मुझे देखता है

समुद्र के भीतर
मैं उसे छू रही हूँ
अपनी जलमयी छाया में

धरती और आकाश से अलग
यह हमारा ही घर है
जहाँ डूब गए हैं
हमारे पँख