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जाओ नहीं / महेन्द्र भटनागर

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बीतते जाते
पहर पर आ पहर
पर, रात ! तुम जाओ नहीं,

जाओ नहीं !

प्यार करता हूँ तुम्हें
तुम पूछ लो झिलमिल सितारों से
कि जागा हूँ
उनींदे नींद से बोझिल पलक ले ;
क्योंकि मेरी भावना
तव रूप में लय हो गयी है !

मैं वही हूँ
एक दिन जिसको समर्पित था
किसी के रूप का धन
सामने तेरे !

तभी तो प्यार करता हूँ तुझे जी भर,
कि तूने ज़िन्दगी के साथ मेरे
वह पिया है रूप का आसव
कि जिसका ही नशा
चहुँ और छाया दीखता है !

इसलिए —
ठहरो अभी, ओ रात !
तुम जाओ नहीं
जाओ नहीं !