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अलग होना चाहती हो / मनोज झा
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अलग होना चाहती हो
क्यों मेरा दिल तोड़कर?
छोड़ तो दोगे, मैं समझा-
क्या मिलेगा छोड़कर।
माफ कर देना मुझे
यदि हो गई गलती कोई,
मिलके मुसका दो ज़रा-
पर यूँ न जा मुँह मोड़कर।
मैं रहूँ या ना रहूँ-
मेरा प्यार बस जिंदा रहे।
मैं पराया हो भी जाऊँ-
फिर भी तू अपना कहे।
तोड़कर जो दर्द दे-
तारीफ उसकी क्या करूँ,
काबिले तारीफ गम दी
तूने तो दिल जोड़कर।
लाख तोड़ोगे न टूटेगा कभी
ये दिल मेरा,
एक गम क्या-
इसमें तो तेरे गम का है सागर भरा।
अभी तो जिंदा हूँ मैं,
भूलो-कि जब मैं मर सकूँ,
अभी मत भूलो मुझे-
तुझे क्या मिलेगा भूलकर।