भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बुलावा / सुभाष राय
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:37, 26 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुभाष राय |अनुवादक= |संग्रह=सलीब प...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
आओ, चले आओ
खिड़कियों से उतरती
सुबह की किरन की तरह
मेरी हथेलियों पर पसर जाओ
रूप, गन्ध, स्पर्श, रस में तुम ही तुम
उतर जाओ मेरे भीतर
भर जाओ रोम-रोम में
आओ बिना कोई सवाल किए
किताब के पन्नों की तरह
खुल जाओ अक्षर-अक्षर
उतर जाओ मेरी आँखों में
मैं आ रहा हूँ, आओ तुम भी
जल में जल की तरह
पसर जाएँ हम-तुम
सागरवत, अन्तहीन, एकाकार