भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बादल / सुभाष राय

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:14, 27 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुभाष राय |अनुवादक= |संग्रह=सलीब प...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जलते अधरों पर गिरी बून्दें
छनछनाकर उड़ गईं पल भर में..
इन्तज़ार में दहक रहा था मन
तन से उठ रहा था धुआँ
नसों में बह रहा था लावा

तुम आए शीतल बयार की तरह
बादलों में छिपकर
मेरे आँगन में बरस गए
भीगा मैं इतना कि भाप बन गया

पर अभी ठहरना कुछ दिन
कुछ और दिन मेरे आस-पास
जब तक मैं भाप से
फिर चमकती
बून्दों में नहीं बदलता