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कुहरे में सोए हैं पेड़ / माहेश्वर तिवारी
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कुहरे में सोए हैं पेड़
पत्ता-पत्ता नम है
यह सबूत क्या कम है
लगता है
लिपटकर टहनियों से
बहुत-बहुत
रोए हैं पेड़ ।
जंगल का घर छूटा
कुछ-कुछ भीतर टूटा
शहरों में
बेघर होकर जीते
सपनों में खोए हैं पेड़ ।