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एक पापा की आत्म-स्वीकृति / ईश्वर करुण

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मेरे बच्चों!

मैंने तुम्हें कश्मीर की घाटियों में देखा था
तुम्हीं तो थे
जो बर्फ से पटी घाटी में
अपनी उष्णता के भरोसे
बर्फ के लोदों से खेल रहे थे.
और मेरी गुजरती कार की
विंडस्क्रीन पर
तुमने अपनी निश्छल मुस्कान
चस्पाँ कर दी थीं

मेरे बच्चों!

तुम्हीं तो थे
बिहार से गुजरती
मेरी बस को देखकर
अनजानी खुशी से चिल्लाते,
एक हाथ से ढीले नाड़े को संभालते
और दूसरे में मिट्टी का लोदा लिये.
फिर उसी अमूर्त लोदे को
अपनी निश्छल बुद्धि से।
मूर्त्त बनाने का प्रयास करते,
निर्माण का बीज वपन करते थे!

मेरे बच्चों !
नागालैंड में छोटी आँखें
पर बड़ा चेहरा औयर उससे भी
बड़ा मन लिये,
गुजरात में
बुजुर्गों वाला बाना धारण किये,
बंगाल में टुनमुन-टुनमुन चलते,
बस्तर में टुक-टुक तकते,
राजस्थानी धोती-मिर्जई में तुम्हीं तो थे.
केरल से गुजरती मेरी रेलगाड़ी को
देखने भी तुम्हीं घरों से
निकल आये थे
अपने हाथ हिलाते, मस्कुराते, शोर मचाते
.....बिलकुल मेरी ‘मुनिया’ मेरे ‘टिंकी’
मेरे ‘सत्तो’, मेरे ‘विशु’ जैसे.
चारमीनार की बगलवाली गली में
मेरे रिक्शे के रुकने पर
तुम्हीं तो किलक रहे थे जोर-जोर से
“अब्बा आ गए पापा आ गए...”
...यही तो लगा मुझे
मेरी अपनी भाषा में!
तब
भाषा की दीवार को छलाँग कर
तुम्हारी संवेदनशीलता ने
मेरी मूँछों के बाल गिनने
शुरू कर दिये थे!
हर जगह मैं अवाक रह गया
... मेरे मुनियाँ! मेरे ही सत्तों ....!!
मेरे बच्चों तुममें जो साम्य की सौम्यता है
जो समन्वय है
और
जो है अपनेपन की मुस्कान
शोर..../ हिलते हाथ....
हैरान हूँ मैं
कैसे बचा रह गया तुममें
मुझमें क्यों नहीं!
मैं, तुम्हारा पापा!
बँटता रहा-
दाढ़ी वाले---- टोपी वाले...
उत्तर वाले..... दक्षिण वाले
और न जाने कितने-कितने वालों में
अपने भले-पूरे वजूद को
कुलबुलाते कीड़ों-जैसे वजूद में
तब्दील होते देखता रहा.
तुम मेरे ऊपर भारी पड़ते रहे
मैं छोटा लगता रहा.
तो क्या समाजशास्त्रीय परिभाषा
सिर्फ तुममें सच है?
“बच्चा पिता का पिता होता है,”

मेरे बच्चों!
मैं एक हिन्दुस्तानी बाप
बाप से पापा में तो ढाल रहा हूँ
पर कहीं, खुद को ही छल रहा हूँ
मेरे बच्चो!
एक नकारा सोच से मुक्ति के लिये
तुम्हारी मदद का
‘याचक’ हो गया हूँ मैं
दोगे?
बदले में
तुम्हें आशीर्वाद देना चाहता हूँ
कि तुम्हारी मुसकाने...
तुम्हारी किलकारियाँ...
तुम्हारा ढीला नाड़ा
तुम्हारे हिलाते हाथ
सलामत रहें
इतने शक्तिशाली हों
कि एक बाप का स्रोत
वहीं से फूटे
और मैं देखता रहूं
तुम्हारे ढीले नाड़े
तुम्हारे हिलाते हाथ.... !