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मेरी भी कुछ सुनो तो / ईश्वर करुण

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आसमान रोज नयी बातें सुनता है
जिन्हें तुम उछालते हो
किन्तु बोलता नहीं,
तुम्हारी बातें सुना करता है
गुना करता है
लेकिन तुम्हारी तरह
सिर नहीं धुना करता
जब वह बोलने पर आता है
तो वर्षों की बूंदों में,
उल्का में
तारों की टिमटिमाहट,
सूर्य के ताप,
चाँदनी की ठंडक में बोलता है,
बोलकर फिर धरती पर उतर जाता है
लेकिन तुम हो
जो रोज नई बातों के साथ
बिन गुने
आसमान में अपनी जगहें
तलाशने लगते हो
और फिर आसमान को
अपनी बपौती मान
उतरना तक नहीं चाहते।
देखो
मेरी भी कुछ सुनो.
और उसी के बगल में
बिसूरते बच्चे को अनदेखा कर गया मैं
क्योंकि वह बच्चा मेरा तो
था नहीं,
लेकिन उस बच्चे की भी आंखे थीं,
आँसू थे और सवाल भी थे।
कब मैं अपने-पराये बच्चे के भेद को
भूलकर दौडूंगा उसकी तरफ ....?
निरुत्तर होने से बचने के लिए!
दौड़ना तो होगा मुझे ही
क्योंकि अदना सा बच्चा भी
तो बच्चा है आखिर,
मेरे पहल के बिना वह तो
दौड़कर आ नहीं सकता !!