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गीत-नेह के नगर में / ईश्वर करुण
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नेह के नगर में विश्वास की धरोहर
लूटने न पाये कभी मीट इसे देखना
काँटे सकुचायें, गायें सन्नते सोहर
मिटाने न पाये कभी कोयल की चेतना.
डार हारसिंगार की दे मात झंझावात को
रात की चुनौतियों छले न सुप्रभात को
बंजारों में भी वसंत ला सकें गुलमोहर
व्यर्थ नहीं जाये अमलतास की उपासना.
पीढ़ियों के पुण्य क प्रपंच घेर पाये ना
कान्हा की बांसुरी को कंस टेर पाये ना
राम-राज वाला हर गाँव हो मनोहर
विहंसती रहे कल की उज्जवल-संभावना.
शीट और दूब का स्मईकरण रहे बना
ऋतुओं के ओंठ पर न हो कभी-आलोचना
प्रेम की हवा में जियें चंडीगढ़- अबोहर
हृदय-हृदय बोयेँ हम आओ सदभावना.