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द्वीप / ऋषभ देव शर्मा

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देखो !
जाने कौन लगा गया
यह
केले का पेड़
मेरी चौखट के आगे;
पत्ते भी
तराश दिये हैं
किसी ने|
बाकी है
बस एक पत्ता
जो हिलता रहता है
प्रेम की पताका सा|

मेरे
चिर विरही मन के
विजयी देवता,
क्या मैं
इसे तुम्हारे
शासन का चिहन
समझूँ
इस शून्य
अनामित द्वीप में ?