भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सर्प लाज के बँधे / ऋषभ देव शर्मा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:57, 30 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा |अनुवादक= |संग्रह=प्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बिजलियाँ तड़प गिरीं, आशा के गाँव में
सर्प लाज के बँधे, यौवन के पाँव में

व्यर्थ हुई भाँवरें, मौन हुई झाँझरें
सपने उदास खड़े, पीपल की छाँव में

एक आँख जोहती, एक आँख टोहती
शंका के छिद्र हुए, अर्पण की नाव में

पंख रंगीन जले, प्राण रूप ने छले
जीतकर हार मिली, जीवन के दाँव में

विस्मृत पहचान हुई, राह अंजान हुई
भटका महमान अब, ठहरे किस ठाँव में?