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इन ए पेपर वर्ल्ड / रश्मि भारद्वाज

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कुछ लोगों का कोई देश नहीं होता
इस पूरी पृथ्वी पर ऐसी कोई चार दीवारों वाली छत नहीं होती जिसे वे घर बुला सकें
ऐसा कोई मानचित्र नहीं, जिसके किसी कोने पर नीली स्याही लगा वह दिखा सकें अपना राज्य

वे अक्सर जहाजों में डालकर कर दिए जाते हैं समंदर के हवाले
कोई भी नाव उन्हें बीच भँवर में डुबो सकती है
आग की लपटें अक्सर उनके पीछे दूर तक चली आया करती हैं
किसी भी ख़ंजर या चाकू को पसंद आ सकता है उनके रक्त का स्वाद
उनके जन्मते ही किसी एक गोली पर उनका नाम लिखा जाना तय है
उनका ख़ात्मा दअरसल मानवता की भलाई के लिए उठाया गया ज़रूरी कदम है

उनके अब मासूम नहीं रह गए बच्चे जानते हैं कि अक्सर माँ को कहाँ उठा कर ले जाते हैं
जहाँ से लौटकर वह सीधी खड़ी भी नहीं हो पाती
पिछली बार और फिर कई-कई बार
उन्होंने भी चुकाया था माँ की अनुपस्थति का हर्ज़ाना
पिता कभी रोते नहीं दिखाई देते
उनके चेहरे की हर रोज़ बढ़ती लकीरें दरअसल सूख चुके आंसू हैं
उनके ईश्वर वे हेलीकॉप्टर हैं जो ऊपर से खाने के पैकेट गिरा जाते हैं
कुछ गठरियों में सिमट आए घर को ढोते
वे पार कर सकते हैं काँटों की कोई भी तारें रातोंरात
काँटों से तो सिर्फ़ शरीर छिलता है
मन से रिसता रक्त कभी बंद नहीं होता।

एक घर
एक परिवार
एक देश
एक पहचान
कागज़ों से बनी इस दुनिया में जी सकने के लिए
उन्हें दरकार है
बस एक कागज़ की