भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चार-चर्मकार / कुमार मुकुल
Kavita Kosh से
Kumar mukul (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:51, 8 अगस्त 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= कुमार मुकुल |संग्रह=सभ्यता और...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जन चार
भार (मृत मवेशी) लिए कंधों पर जा रहे
हिम्मत सबकी
हो रही तार-तार
मृत्यु का बोझ
हो रहा भार है
त्याग दें भार तो
जीना दुश्वार है।