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लक्ष्य का संधान / ईहातीत क्षण / मृदुल कीर्ति
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रति के बाद विरति,
भोग के बाद का अवसाद ,
कर्म के बाद का निष्काम ,
श्रम के बाद का विश्राम ,
राग के बाद का विराग ,
ही
सिखा पाते हैं
कि
ममत्व में कुछ भी तेरा नहीं है,
समत्व में सब कुछ तेरा है.
अन्तिम लक्ष्य का संधान करना हो तो ,
हमारी प्रार्थना का मूल यही हो.
हे ईश्वर !
तन परिश्रमी हो,
मन संयमी हो,
बुद्धि विरागी हो,
हृदय अनुरागी हो.