भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कब तक ? / दिनेश्वर प्रसाद
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:34, 24 अगस्त 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश्वर प्रसाद |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कब तक ? यार ! कब तक ? यार !
बालू में गाड़ोगे सूरज को
आग के पौधे निकल आएँगे ।
कब तक ? यार ! कब तक ? यार !
शव को सूई दोगे पारे की ?
उसके हाथ-पाँव गल जाएँगे !
कब तक करोगे हवा की कैंची ?
तुम्हारी स्वागतोक्तियाँ
तुम्हारे रँगमँच पर आने से पहले
मैंने सुन ली हैं ।
मैं तुम्हें हैमलेट खेलने नहीं दूँगा ।