भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भजकटिया मसूर / पीसी लाल यादव
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:48, 26 अगस्त 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पीसी लाल यादव |अनुवादक= |संग्रह=मै...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
भजकटिया डार के रांधे हँव मसूर, रांधे हँव मसूर
येल-येल के खावय मोर बूढ़हा ससूर...।
बड़े बिहनिया धरसा ले टोर के,
लाने रिहिस बबा पटका म जोर के।
कहूँ नई रांधतेंव त बततिस मोरे कसूर।
झिंतरी झिंतरी कांटा फरे गोल-गोल,
उसन के बीजा ल निकालेंव पिचकोल।
एक घाँव खाही तेन दुसरइया मांग ही जरूर।
मिरचा फोरन डार रांधेव बघार,
पारा-परोस ममहागे चारे-दुवार।
नई चाही दार चिखना नई अथान के कूर।
भजकटिया मसूर पुस्टई के खजाना।
बबा ह कहिथे नाती जरूर खाना।
मुच-मुच मगन बबा, नाचे मन-मंजूर।