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कितनी दमघोंट तपती ऊँचाइयाँ / दिनेश्वर प्रसाद

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कितनी दमघोंट तपती ऊँचाइयों
और असुर्या घाटियों के बाद
            यह समतल आया है !

यहाँ किन्हीं आँखों में
बोनी थी कुछ हँसी
किसी दर्पण में
आँकने थे कुछ बिम्ब

लेकिन फिर सभा करती हुई
                  नई उदासियाँ
फिर बतियाती हुई नई असफलताएँ
फिर बाट जोहती हुई नई यात्राएँ

(8 नवम्बर 1968)