कभी मुझे 
कोई कष्ट नहीं दिया ।
कभी नहीं की 
कोई कठोर बात ।
फिर भी क्यों
तुम्हारी खिड़की के खूब पास
मेरे पुराने यह प्राण
नई कविता लिए 
कितनी देर से खड़े हुए हैं ?
लो, हाथ बढ़ाकर ले लो !
मूल बाँगला भाषा से अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी
कभी मुझे 
कोई कष्ट नहीं दिया ।
कभी नहीं की 
कोई कठोर बात ।
फिर भी क्यों
तुम्हारी खिड़की के खूब पास
मेरे पुराने यह प्राण
नई कविता लिए 
कितनी देर से खड़े हुए हैं ?
लो, हाथ बढ़ाकर ले लो !
मूल बाँगला भाषा से अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी