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तिरेसठवें वर्ष में / जय गोस्वामी / रामशंकर द्विवेदी
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पहले वर्ष का छात्र
जैसे लिखता है, वैसे ही
सहज भंगिमा में आवेगों को लिखो ।
बताओ
कि आज भी तेज़ धूप,
वर्षा याद आती है...
अब भी क्या
क्षत-विक्षत होते हो
प्रेम के दंश से ।
मूल बाँगला भाषा से अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी