भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भोर / जय गोस्वामी / रामशंकर द्विवेदी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:36, 5 सितम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जय गोस्वामी |अनुवादक=रामशंकर द्व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तुम्हें तो मैं पहचानता हूँ
सूर्यास्त में
जब गोधूलि आकर
रँगीन कर देती है मेघों को,
तुम आओ
रंगीन कर दो मेरे जीवन को
सन्ध्या नहीं,
तुम्हारे आते ही
हो जाता है सब कुछ भोर,
जितने समय
तुम रहती हो मेरे पास,
वही समय हो जाता है
मेरे लिए अछोर
मूल बाँगला भाषा से अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी