भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बन्द / अरुण चन्द्र रॉय
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:58, 26 सितम्बर 2019 का अवतरण
वे चाहते हैं
होंठ सिले रहें
और बन्द हो जाएँ
स्वर
ताकि न लगे कोई
नारा कभी
शासन के विरुद्ध
चाहते हैं वे
उँगलियाँ
न आएँ कभी साथ
बनाने को मुट्ठी
जो उठे प्रतिरोध में
ठिठके रहे
क़दम
एक ताल में
न उठे कभी
सदनों की ओर
वे चाहते हैं
छीन लेना
हक़ जीने का
विरोध जताने का ।