भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कविता - 5 / योगेश शर्मा
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:27, 7 अक्टूबर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=योगेश शर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मेरे कवि होने के ताने मिले हैं मुझे...
इस तरह
इन हालात में
प्रायः कविता लिखी नही जाती
बल्कि वह तो
आत्मा के प्रकाश पुंज से उतपन्न होकर
मेरी देह की परतों को फोड़ती हुई
चुपके से मेरे सभ्य समाज के
मरुस्थल में बहकर कहीं गुम हो जाती है।