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कभी-कभी उसकी याद में / प्रतिमा त्रिपाठी

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कभी-कभी उसकी याद में ..
 कुण्डी बेवजह दस्तक देती है
इंतज़ार में दरवाजे खड़े रहते हैं
घर भूला रहता है अपना पता !

कभी-कभी उसकी याद में ..
आँखों में चुभती रहती है सहर
शाम तसल्ली बख्शा करती है
नींद रातों पे कुर्बान हो जाती है !

कभी-कभी उसकी याद में ..
कॉफ़ी के कई प्याले जमा होते हैं
निवाले हाथों से छूट जाते हैं
कोई हूक हलक में अटक जाती है !

कभी-कभी उसकी याद में ..
रूह कुछ और उपर उठ जाती है
ज़िस्म कुछ और ढला जाता है
दिल वहीँ ठहरा हुआ..
गोशा-ए-दस्त हुआ जाता है !

कभी-कभी ..उसकी याद में !