भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आँधी चली थी शम्आ बुझाने तमाम रात / आरती कुमारी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:04, 18 अक्टूबर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आरती कुमारी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आँधी चली थी शम्आ बुझाने तमाम रात
जलते रहे थे ख़्वाब सुहाने तमाम रात

यूँ मेरे दर्दे दिल की दवा बन सके न तुम
रिसते रहे वो ज़ख्म पुराने तमाम रात

तोड़ा था जिसके दिल को सितारों ने बेसबब
आये थे जुगनू उसको मनाने तमाम रात

जिनके लिए थी दिल की वो महफ़िल सजी हुई
आए नहीं वो रस्म निभाने तमाम रात

आई नहीं न आँख लगी सुब्ह हो गई
करती रही ये नींद बहाने तमाम रात