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आसन्न प्रसवा के लिये / उर्मिल सत्यभूषण

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तिमिर को भेद कर
मुस्का रहा है एक तारा
तुम्हारी गोद में उंडेलता
आलोक-सारा
तुम्हारी देह का सौरभ
तुम्हें महका रहा है
कहीं पर खिल रहा है
प्रेम का प्रतीक प्यारा
तुम्हारी वेदना के मेघ
किरणों से सजे हैं
कि झंझा के झकोरों में
बजा है झुनझुना प्यारा
तुम्हारे द्वार पर वात्सल्य
है चुपचाप ही आया
उषा ने चूम कर मुखड़ा
रवि का थाल है वारा।