भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
याद पुरानी आ गई (शरद गीत) / उर्मिल सत्यभूषण
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:22, 21 अक्टूबर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उर्मिल सत्यभूषण |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
याद पुरानी आ गई
मेरा दिल बहला गई
झील थी और नाव थी
हम थे तुम थे रात थी
तारों की बारात थी
खुशियाँ थी बरसा गई
थी पूनम की रात वो
और शरद का चांद वो
हमें देखती आंख वो
शायद थी शरमा गई
हम तुम तो मदहोश थे
चुप थे या बेहोश थे
चप्पू भी खामोश थे
नाव भंवर में आ गई
अस्फुट स्वर में गाती मैं
और लिपटती जाती मैं
शरमाती, घबराती मैं
लहरों सी लहरा गई
देखा लहरों का नर्त्तन
देखा पुष्पों का वर्षण
कुदरत का वो आकर्षण
रूप अनूप दिखा गई
हृदय हृदय से मिलते थे
फूल प्रेम के खिलते थे
जल में साये हिलते थे
छटा अनोखी छा गई।