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गाते रहे हम भजन जिंदगी के / उर्मिल सत्यभूषण
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गाते रहे हम भजन जिंदगी के
मंदिर से पूजे भवन जिंदगी के
कांटों बिंधे थे जो माटी सने थे
अच्छे लगे वो चरण जिंदगी के
अपनी ही खुशबू को पाने की खातिर
भागे बहुत हैं हिरण जिंदगी के
धुलते रहे जो इन अश्कों के जल से
उजले हुए वो वसन जिंदगी के
माली ने खुद को ही माटी बनाया
तब जाके महके चमन जिंदगी के
सूखी सी समिधा सरीखे जले हम
होते रहे हैं हवन जिंदगी के
संग-संग जिये और संग-संग मरे हैं
उर्मिल ये सारे सपन जिंदगी के।