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जाल में मीन / प्रेमलता त्रिपाठी
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जाल में मीन नहीं अभिज्ञान।
तड़प जीवन करता अवसान।
घिरा विपदा में आज स्वदेश,
बाढ़ से नहीं सभी अनजान।
नाव तो ईश लगाते पार,
कर्म हमको करना संधान।
मिटा दो ईर्ष्या मन के भाव,
खुशी दो महके मन उद्यान।
नवल हम दीप जला लें आस,
पुनः नव जीवन का उत्थान।
गिरा कर तृष्णा की बिष बेल,
प्रेम हो सार बढ़े अभियान।