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पीपल का पेड़ / आशुतोष सिंह 'साक्षी'

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है एक पीपल का पेड़ मेरे गाँव में।
चैन मिलता नहीं अब उसकी छाँव में॥

सूख गये अश्क़ सभी की आँखों के।
चलें हम कैसे चुभे हैं काँटे पाँव में॥

सिक्कों का चश्मा पहनें हैं चिकित्सक।
पैसे नज़र आते हैं उन्हें गरीब के घाव में॥

यह कैसी विडम्बना है देखो ‘साक्षी’।
आने वाला कल भी लगा है दांव में॥

ज़िन्दगी जीने की तमन्ना किये जा रहे थे।
हो गई बहुत देर, अब दिखा छेद नाव में॥