भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बिना शीर्षक-2 / विजया सती
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:47, 21 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजया सती }} सोचने से मेरी उलझनें बढ़ी हैं चाहती हूँ, स...)
सोचने से मेरी उलझनें बढ़ी हैं
चाहती हूँ, सोचना छोड़ दूँ !
बहरहाल
मेरी उलझनें
बढ़ गई हैं
क्योंकि मैं
सोच रही हूँ
सोचना कैसे छोड़ दूँ ?