भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

समय भला कब ठहरा है / छाया त्रिपाठी ओझा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:46, 6 नवम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=छाया त्रिपाठी ओझा |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ भी कर डालें हम लेकिन
यह समय भला कब ठहरा है।

केवल खेल खिलाने आता
कभी हंसाता कभी रुलाता
एक यही है शक्तिमान बस
दुनिया का है यही विधाता
लेकर बसुधा से अंबर तक
सिर्फ इसी का ही पहरा है।
कुछ भी कर डालें हम लेकिन
समय भला कब ठहरा है।

सुख-दुख को पहचान रहे हम
अपना दूजा जान रहे हम
गिरकर उठकर संभल संभलकर
लक्ष्य नया नित ठान रहे हम
जब तक यह है साथ तभी तक
सांसों से रिश्ता गहरा है।
कुछ भी कर डालें हम लेकिन
यह समय भला कब ठहरा है।

खुशियां ग़म सब लेकर चलता
और यही जो भाग्य बदलता
इसके ही सब ताने-बानें
मन चाहे जब जिसको छलता
सुनता नहीं किसी की कुछ भी
सच में यह बिल्कुल बहरा है।
कुछ भी कर डालें हम लेकिन
यह समय भला कब ठहरा है।