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वसंत तो आया है पर / लावण्या शाह

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कल सुबह सुबह, अमुवा के पेड पर, एक कोयल - फुसफुसाई ! हमने कहा, " अरे ! यह क्या ? आपकी सुरीली तान कहाँ गई ? " तब लँबी साँस लेकर वह बोली, " पर्यावरण का प्रदुषण देखो - मेरी आवाज़ बैठ गई है ! !! " सच है, सारा आकाश धुँआ धुँआ, मिल से उठता काला बादल, सडकोँ पर अनवरत यातायात, वसँत तो आया है पर ..... कौन सुनना चाहता है, कूक ?