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मिलन -राग / कविता भट्ट

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मेघ ने धरा-
धरा पर चुम्बन,
झूमे बरसे।
विरहन तरसे
मिलन-राग
गाओ प्रिय फिर से।
गूँगे का गुड़
मन कुछ यूँ हर्षे
मनुहार हो
प्रेमालाप-प्यार हो,
आशा है-अम्बर से।