भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीवन / कीर्ति चौधरी

Kavita Kosh से
77.41.24.185 (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 00:06, 26 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कीर्ति चौधरी }} एक जीवन मिला था उसे जिया नहीं वह अमृत-घ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक जीवन मिला था

उसे जिया नहीं

वह अमृत-घट था

उसे पिया नहीं


भरमते रहे

प्यासे अौर निरीह

उस झरने की खोज में

जो अंदर था

बंद अौर ठहरा हुआ

उसे अपने को दिया नहीं


माँगते रहे प्यार अौर आश्वासन

कृपण हो गए हैं लोग

दुहराते रहे बार-बार

खुद को कुछ दिया नहीं

खोजते रहे अलंकरण

सजाने के

उन सपनों को--जो दिखे नहीं।