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संक्रमण : गुलमोहर के फूल! / लावण्या शाह

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लेखक: लावण्या शाह

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जेठ के ताप से झुलस झुलस कर ,
पेड ने उँडेल दिया जब अपना मन,
तब सैँकडो खिल उठे, हरी डाल पे,
लाल चटक गुलमोहर के फूल !

सँजो दिये टहनी पे अनगिनती,
मादक नव रूप ~ रँग, सँग
भर भर दे रहे हमे उमँग,
लाल लाल, गुलमोहर के फूल !

आकाश तक फैल गई लाली,
हुई सिँदुरी साँझ, मतवाली
बहती पवन सँग आन गिरे
माटी पे,गुलमोहर के फूल !

हर क्रिया घटती ना अकारण,
नवोन्मेष सरल व्याकरण
सीखाती प्रक्रुति दे उदाहरण
युँ ही खिलते,गुलमोहर के फूल !