भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्वीकार मुझे / दीनानाथ सुमित्र

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:49, 19 दिसम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीनानाथ सुमित्र |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शूल पंथ पर चलना है स्वीकार मुझे
नहीं चाहिए फूलों पर अधिकार मुझे
 
जिसको सुख कहते हो दुख है
जिसको दुख करते हो सुख है
नहीं चाहिए सुख का पारावार मुझे
शूल पंथ पर चलना है स्वीकार मुझे
नहीं चाहिए फूलों पर अधिकार मुझे
 
खाना मुझको चना-चवेना
सुर भोजन से है क्या लेना
देती है सब कुछ मेरी सरकार मुझे
शूल पंथ पर चलना है स्वीकार मुझे
नहीं चाहिए फूलों पर अधिकार मुझे
 
सारी धरती का दुख डेरा
सदा लगाया इसका फेरा
प्यारा लगता है सारा संसार मुझे
शूल पंथ पर चलना है स्वीकार मुझे
नहीं चाहिए फूलों पर अधिकार मुझे