भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आदमी को है डर आदमी का / हरि फ़ैज़ाबादी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:52, 25 दिसम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरि फ़ैज़ाबादी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आदमी को है डर आदमी का
कैसे होगा गुज़र आदमी का

अस्ल में वो किसी का नहीं है
आदमी जो है हर आदमी का

साफ़ नीयत नहीं है अगर तो
बेजा हर फ़न, हुनर आदमी का

और कोशिश करो खुलते-खुलते
खुलता है पूरा पर आदमी का

भूख से कम नहीं जानलेवा
ज़िल्लतों में बसर आदमी का

ग़ैर मुमकिन किसी के हुनर से
होना अपना असर आदमी का

रोक सकती नहीं कोई मुश्किल
हक़ पे गर है सफ़र आदमी का