भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ऊ बोल चलल / कैलाश चौधरी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:20, 26 दिसम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कैलाश चौधरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
पियास के मारे
सब फूलबन रो रहल हल
मौल रहल हल
मगर कुछ कह नय सकऽ हल
हम भी पढ़े गेली हल
छुट्टी होला पर आइली,
फूलबन के मौलते देख के
हमरो चेहरा सूख गेल
किताब ताखा पर रख देली
आउ ओकरा पटबे लगली
देखते-देखते ऊ बिहंसे लगल
लगइ की ऊ बोल चलल
आउ अपन धमक से
हमरा खुश कर देलक
हमर हिरदा
खुशी मे नाचे लगल ।
ओकरा से हमरा
बचपने से परेम हल
बिना देखले हमरा
रहल नञ जाहल
आज ओकरा जब पियास मिटौली
त ऊ भी चुप नञ रहल
अपन परेम के बखान
मुस्कुरा के कर देलक ।