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खिड़की को देखूँ कभी / अभिषेक कुमार अम्बर
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Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:15, 22 जनवरी 2020 का अवतरण
खिड़की को देखूँ कभी,कभी घड़ी की ओर,
नींद हमें आती नहीं ,कब होगी अब भोर।
कब होगी अब भोर ,खेलने हमको जाना,
मारें चौक्के छक्के, हवा में गेंद उड़ाना।
कह 'अम्बर' कविराय,पड़ोसन हम पर भड़की।
जोर जोर चिल्लाये ,देखकर टूटी खिड़की।
(कुण्डलिया छंद)