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बात / सरोज कुमार
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कविता जब लिखी थी
आईना थी
मेरे मन की बात का
मनभावन, रिझावन !
अब वह बात नहीं रही!
बात, कोई बुत तो होती नहीं
कि बनी ही रहे!
रही, रही। न रही, न रही!
बात चाहे नहीं रही
पर कविता तो है यथावत।
जो आईना थी!
उसमे वह बात भी है
जो अब नहीं रही!