Last modified on 26 जनवरी 2020, at 23:03

तू और तेरा / ऋतु त्यागी

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:03, 26 जनवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ऋतु त्यागी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मख़मली आवाज़ का ज़ादू
ओस में लिपटी हँसी की धमक
स्वाभिमान के कोहरे में लिपटकर
चाँद सी अठखेलियाँ
खुद से ही रूठना
फिर बिख़र जाना
तेरे भीतर के पसारे में
बरसती नेह की बदली
फिर चुपके से संगत करती
कोई ख़ामोश गज़ल
तेरे मन के हाश़िए पर
खिंची रेखा को
लाँघने का हौसला
हो जाएगा तब हासिल
जब तेरी सोच का सूरज
चीरकर गहरी बदली का टुकड़ा
छा जाएगा आसमान पर
जहाँ के हर हिस्से पर
गीत तेरी कलम की
स्याही के होंगे।