भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किसी फ़िल्म की नायिका की तरह / ऋतु त्यागी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:05, 26 जनवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ऋतु त्यागी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

"भाग गई
उम्र के सोलहवें वसंत को बेलौस जीती
और
किसी फ़िल्म की नायिका की तरह
दिखने की कोशिश करती
दो लड़कियाँ"
आदर्शों की बागडोर थामे
किसी सभ्य ने अपनी
छिछली हँसी के साथ
मेरे कान में उछाला
मैंने सुना और अनसुना
और एक लंबी चुप्पी टाँगकर
उसके कंधे पर
धीरे से सरक गई।
लड़कियाँ भागती हैं
और लड़के चले जाते हैं
या भगा ले जाते हैं
किसी को
फ़र्क़ है बस इतना
एक के अंदर डर है
दूसरा निडर है।